16.2.10

सूरज एक टप्पा ले के फिर घूमता सा आया
लप्पे में ज़िन्दगी ने एक और दिन गँवाया


दिन को सुबह के सिरे से पकड़ कर फिर सुलट दिया है
देखें शाम तक फिर से कितना उलझता है

हम तो सीखा-सिखाया भूल चुके
अब कोई बात नयी हमको सिखाओ बच्चों

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