13.12.16

उठ हनुमान

सामने अपार सागर है.
सुदूर क्षितिज पर लंका के स्वर्णकंगूरे डूबते सूरज की रोशनी में रक्ताभ हो गए हैं.
सारे वानर सर हाथों में लिए हताश बैठे हैं.
और हनुमान भी पालथी लगाए ऐसे बैठे हैं मानो सचमुच मात्र एक बन्दर हों.
जामवंत खड़े होते हैं, बूढ़े ही सही, अभी भी उनका कद साढ़े सात फुट का है.
वे अपनी रीछ चाल में झूमते हनुमान के सामने जा खड़े होते हैं.
हनुमान एक ठंडी सांस भर नज़र उठाते हैं.
शायद जामवंत उन्हें सहानुभूति देंगे और वापस चलने का न्योता.
जो कर सकते थे किया.
मगर जामवंत की लाल आँखें देख हनुमान चौंक जाते हैं.
जामवंत बोलना शुरू करते हैं.
आवाज़ में गुर्राहट के साथ साथ एक सम्मोहक सी ताल.
मानो नेपथ्य से किसी हैवी मेटल गीत की धुन बज रही है, शायद मैटेलिका का एटलस, राइज़.:


***
तू हाथ जोड़ के झुकना छोड़
संशय विनय में रुकना छोड़
तू खुद को ज़रा पहचान
उठ हनुमान
तेरी सांस सांस बिजली कड़के
पेशी पेशी अंधड़ फड़के
तेरे ह्रदय में दावानल धड़के
और नस नस में तूफ़ान
उठ हनुमान
क्या तेरे लिए ये सागर है
ये छोटी सी एक गागर है
वो लंका दो फर्लांग
जो मारे एक छलांग
उठ हनुमान
तू चले तो धरती काँपे है
तूने तो सूरज फांके है
तू नून-मिट्टी का मनुज नहीं
तू नहीं दम्भ से चूर देव
तू चक्रवर्ती एक चक्रवात
झिंझोड़ स्वयं को झंझावात
तू एलीमेन्टल प्रकृतिजात
तू शिव का है अवतार मान
तू शक्ति की है संतान
उठ हनुमान

***

और हनुमान उठ खड़े होते हैं.
सात फुट. साठ फुट. बताना मुश्किल है.
सागर के ऊपर बिजली कड़कने लगी है. लहरें बेचैन.
हवा तेज़ हो गयी है. या फिर हनुमान की सांस. दोनों एक ही तो हैं.
जमीन में हल्का हल्का कंपन है.
एक बूम की आवाज़. शॉकवेव.
और हनुमान एक तीर की तरह छूट के आँखों से ओझल.
वानर हक्के बक्के हैं. मगर जामवंत मुस्कुरा रहे हैं.


7.11.16

दिल का किराया

शबे ग़म ऐसे बिताया कीजे
जो रोना आये तो गाया कीजे

सरे राह दोस्त बना करके फिर
हाले दिल उसको सुनाया कीजे

खालीपन दिल को सताए जब कभी
कम ज़रा दिल का किराया कीजे

याके फिर खाली दिल के भरने को
आंसू पी पी के ग़म खाया कीजे

मन्नू नाकामियों के किस्सों से
वक़्त महफ़िल का ना जाया कीजे


***

गहरे पानी में पैठ जाया करो
दिल जो भारी हो बैठ जाया करो
हाँ तुम्हें लाख जलाये दुनिया
जल के रस्सी से ऐंठ जाया करो

10.10.16

नवदुर्गा

Day 1

हवनकुंड में हुयी सती
फिर जन्मी वो पार्वती
हुयी पुनः शिव की वामा
गणेश-कार्तिकेय की माँ
एक हाथ में लिए त्रिशूल
और दूसरे पद्म-फूल
वृषारूढा नंदी-सवार
साक्षात शक्ति-अवतार
चन्द्रमा से भाल पर
अर्ध चंद्रिका डाल कर
नवदुर्गा का पहला रूप
माता प्रकृति-स्वरुप

मूलाधार चक्र की स्वामिनी
माँ शैलपुत्री भवानी

This one for Mother Nature.


Day 2

पार्वती ने शिव को देखा
सती-जन्म स्मरण हो आया
शिव को पाने शिव में खोने
पार्वती चली शक्ति होने
शिव तो ठहरे घोर अघोरी
कामातीत वो आदियोगी
श्वेताम्बर धर हुई तपस्विनी
नाम धरा फिर ब्रह्मचारिणी
एक हाथ रुद्राक्ष की माला
दूजे लिया कमंडल प्याला
पर्ण भोज तज क्षीणकाय हो
उमा अपर्णा कहलाई वो
तन मन की सारी सुध त्यागी
शिव-सम वो भी हुयी विरागी

स्वाधिष्ठान चक्र की स्वामिनी
माँ ब्रह्मचारिणी

This one for shunning the material world to seek the infinite spirit.


Day 3

शिव ने तज कर घोर तपस्या
पार्वती को हिया लगाया
शिव ले कर फिर चले बाराती
भूत पिशाच औघड़ सन्यासी
शिव-रूपम विकराल देख कर
गौरा की माँ खाई चक्कर
चंद्रघंटा रूप बना कर
भाल पर चन्द्रमा बिठा कर
पार्वती ने शिव को मनाया
शिव ने सौम्य रूप सजाया
अष्टभुजा है रूप तीसरा
अभया-मुद्रा सिन्हारूढा
रौद्ररूप में जब ये आये
चंडी चामुण्डा कहलाए

नाभि-स्थित मणिपुर चक्र की स्वामिनी
माँ चंद्रघंटा/चंद्रखंडा

This one for her powers of persuasion that are more than a match for Shiva.


Day 4

स्व-ऊष्मा ब्रह्माण्ड बनाया
इसी तेज से सूर्य जलाया
वाम नेत्र जन्मी महाकाली
वीभत्सा श्यामा विकराली
दायें नेत्र से धवल शारदा
शांतस्वरूपा श्वेताम्बरा
तीसरे नेत्र जन्मी महालक्ष्मी
ऐश्वर्या वह ज्वालारूपी
फिर इनसे जन्मे त्रिदेव
ब्रह्मा विष्णु महादेव
आदि शक्ति वह जीवन ऊर्जा
बीजस्वरुप अनंत सृष्टि का
प्रथमगर्भा आद्या माता का
चतुर्रूप कूष्मांडा कहाता

अनाहत चक्र की स्वामिनी
माँ कूष्मांडा

This one for the beginning of the beginning, the mother prime.


Day 5

कार्तिकेय को जन्म दिया
सौम्य वत्सला रूप धरा
दुग्ध धवल स्वर्णिम काया
दूजा नाम हुआ गौरा
पुत्र स्कंद को गोद लिए
बैठी वो पद्मासना
मंद स्मिति ममतामयी
मातरूप सहजप्रसना
तीन नेत्र और चार भुजा
वाहन सिंह अभय मुद्रा
दो हाथों में पद्म पुष्प
एक में पुत्र एक वरदा
कालिदास की इष्टदेवी
अग्निरूपा आदिमाता

विशुद्ध चक्र की स्वामिनी
माँ स्कंदमाता

This one for the tender yet fierce love of the mother for her infant.


Day 6

त्रिमूर्ति के रौद्र से उपजा
महाउग्र रूप देवी का
तीन नेत्र अट्ठारह भुजा
दिव्यास्त्रों से सुसज्जिता
शिव त्रिशूल चक्र विष्णु
सूर्य बाण पवन धनुषा
इंद्रदेव से वज्र लिया
और कुबेर से ली गदा
वरुण शंख अग्नि भाला
ब्रह्मा की कमंडल माला
काल ने दी तलवार ढाल
विश्वकर्मा परशु विशाल
चली युद्ध को फिर चामुंडी
सिंहारूढ़ प्रचण्ड रणचंडी
चंड मुंड रक्तबीज संहारे
सारे विकट असुर भी हारे
महिषासुर से युद्ध रचाया
भैंसा रूप में मार गिराया
गोपियों की वह आराध्या
कात्यायनी कुमारी कन्या

तीसरे नेत्र स्थित अज्ञ चक्र की स्वामिनी
माँ कात्यायनी

This one for the avenger and the slayer of bullies.


Day 7

घने अन्धकार सी काली
कुंजलकेश घोर विकराली
भय के भूत पिशाच संहारे
महाप्रलय का रूप जो धारे
गले दामिनी चमके माला
श्वास निश्वास में दहके ज्वाला
तीन नेत्र विद्युत से स्फुरित
चार भुजा ले हुयी अवतरित
रक्तबीज को जिसने हराया
रक्त धरा न छूने पाया
खडग वज्र हाथ में धारी
गर्दभ वाहन करे सवारी
अभया भय को करे निवारी
तभी कहलाती शुभंकारी

सहस्त्रार चक्र की स्वामिनी
माँ कालरात्रि

This one for putting fear in the heart of fear itself


Day 8

शिव को साधे ब्रह्मचारिणी
भूखी प्यासी हो तपस्विनी
तप में बरसों तन को गलाया
कोमल गात मलिन हो आया
शिव ने तब गंगा जल लेकर
साफ़ करी उमा की काया
गौर वर्ण फिर दीप्यमान हो
शंख, चंद्र, कुंदपुष्प समान वो
श्वेताभूषण श्वेत वस्त्र धर
डमरू और त्रिशूल अस्त्र धर
श्वेत वृषभ की करे सवारी
सुखद बाल कन्या छवि धारी
शांत सौम्य पवित्र स्वरुप
दोषहीन परिपूर्ण ये रूप

सहस्त्रार चक्र की स्वामिनी
माँ महागौरी

This one for attaining perfection of body and spirit.


Day 9

पराशक्ति वह थी अशरीरी
शिव से ब्रह्मा रचे मैथुनी
सृष्टिरूप यह पूर्ण जागृत
द्वैत हुआ अद्वैत समाहित
शिव ने अष्टसिद्धि को साधा
आधी शक्ति और शिव आधा
पूर्णसिद्ध शिव नया रूप धर
तब कहलाये अर्धनारीश्वर
सौम्या आसनरूढ़ कमल पर
पूजें यक्ष गन्धर्व देवासुर
कमल चक्र और शंख गदाधर
पूर्ण मनोरथ जो मांगे वर
नवरात्रों का हुआ समापन
इति नवदुर्गा रूप का वर्णन

मातृ शक्ति, प्रजनन शक्ति का सम्पूर्ण रूप
माँ सिद्धिदात्री

This one for the union and the manifestation of the metaphysical to create the physical world.

27.9.16

सोनापानी

तुम कहते थे वहां शोर नहीं
और भीड़ भाड़ का ठौर नहीं
वहां ख़ामोशी के सोते हैं
और सन्नाटों के डबरे हैं

मैंने सोचा चल देख आएं

पगडंडी के उस कोने पर
इक स्लेटी पत्थर का घर है
जहां झबरू कुत्ता रहता है
जो खुद को झुमरू कहता है

हाँ वो चुपचाप ही रहता है

वहां तितली के हैं ठाठ सही
वहाँ फूलों की है जमात बड़ी
वहां हिल मिल के हैं चीड़ खड़े
और चिड़ियों के भी नीड़ कई

किसने चिड़िया घर खोला है?

वो चिड़िया बड़ी बातूनी हैं
तड़के तड़के उठ जाती हैं
चकचकचक बकबक कर कर के
सूरज को रोज़ उठाती हैं

वो लड़ती हैं या गाती हैं?

और सूरज जब सो जाता है
झींगुर के कुल उठ जाते हैं
अपने वायलिन चेलो ले कर
वो क्या कम शोर मचाते हैं?

वो जैज़ के प्रेमी लगते हैं

शहरों के आसमान में तो
फिर तारे गिनना मुमकिन है
पर उधर की रात की बात न कर
उसके तारे तो अनगिन हैं

वो आसमान ही दूजा है

तुम तो कहते थे शोर नहीं
हाँ ट्रैफिक का न शोर सही
वहां भीड़ भाड़ का ठौर नहीं
तितली चिड़िया की भीड़ तो है

बड़ी चहल पहल है जंगल में

30.8.16

ज़िंदगी के सिक्के का हेड

मेरी ज़िंदगी के सिक्के का हेड है तू
जब जब तू आती है, मैं जीत जाता हूँ

समंदर सियाह

हाँ समंदर सियाह तो है
इस से होके भी राह तो है


तीर

हर शाख की तकदीर है
कोई बांसुरी कोई तीर है

जो  खींच ले तो डोर है 
जो रोक दे ज़ंज़ीर है 

बर्फ सी कभी आग सी 
माह की तासीर है 

22.8.16

फकीरों को धंधा

ये कैसा वक़्त अंधा आ गया है
फकीरों को भी धंधा आ गया है


बेआबरू कर कूचे से निकालो
तुम्हारे दर पे बन्दा आ गया है

13.5.16

शायर सपना

रात नींद की हड़ताली थी
फिर भी सपने काम पे आये
उकड़ू बैठे, गप्पे हाँकी
बीड़ी फूंकी, खैनी रगड़ी
किस्से खोले क़िस्मत कोसी

एक सपना कविता करता था
अपने को शायर कहता था
सारी बातें तुकबंदी में
बोल बोल बोर करता था

मगर अपन को टाइम बड़ा था
हम बोले इरशाद मियाँ
कुछ अधकच्चा अच्छा कह दो
दे देंगे फिर दाद मियाँ

उसने अपना गला खँखारा
आवारा सी लट को संवारा
कुरते की सलवट फटकारी
और डायरी खोल के बोला

घास का एक बिछौना सा था
चाँद का एक खिलौना सा था
हमने सोचा ऐसा कर लें
नभ को उसका माथा कर लें
उस माथे पे बिंदी होगी
उस बिंदी को चाँद कहेंगे

मैं बोला ये बात है बासी
प्यार मोहब्बत चाँद की बिंदी
अब तो टैटू फैशन में हैं
अब ये बिंदी कौन लगाए
खुद के दिल का हाल बताओ
कोई नयी मिसाल बताओ

थोड़ा सा नाराज़ हुआ वो
लेकिन हमसे कुछ ना बोला
अगला सफ़ा पलट कर बोला

जानते थे वो पत्थर दिल है
पत्थर दिल से काम चलाया
चाँद को उसके दिल बट्टे पे
यानी दिल के सिलबट्टे पे
घिस घिस के चन्दन कर डाला
फिर अपने माथे पे लगाया

मैं बोला हाँ इसमें दम है
लेकिन इसमें भी इक ख़म है
चाँद पे अख्तियार है उसका
नाम मियाँ गुलज़ार है जिसका
चाँद के चर्चे छोड़ दो बेटा
कविता का रुख मोड़ तो बेटा

सपना बोला सुन बे अंकल
प्यार मोहब्बत चाँद के चर्चे,
दिल की बातें, सूनी रातें
दर्द वर्द के किस्से विस्से
अपनी तो जागीर यही है
चाँद भला है किस की बपौती
किसको देनी होगी फिरौती
उमर हो चली है अब तेरी
इशक विशक को भूल चला है
रात जलाना अब बस का ना
करवट ले के सो जा अंकल