11.2.13

Corbett

ज़ादू का जंगल था
चाँदी का पानी था
नश्तर सी धूपें थी
अलसाई सुबहें थी

पेड़ों की भीड़ों में
दीमक की बाम्बी थी
चीते तो सोते थे
सांभर से बातें की

बिन सुर के गाते थे
रातों रतजागे थे 
हलके से बहके थे 
रेलों सी बातें थी










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