13.2.13

बिरहा Reviving an old creation



दिन बिरहा के निगल न पावूं, बिना नमक का साग 


कब लौटोगे , थक्या छत पे बोल-बोल के काग 
कब घर पर सोवेंगे साजन , कब जागेंगे भाग 

सूखी टहनी ये तन मेरा, याद तुम्हारी आग
रात बंटी है करवट करवट, बिस्तर काला नाग 

कैसा जेठा, कैसी कात्तिक, कैसे पूस और माघ 
बिन बाती के बले दिवाली, सूखा घूमे फाग 

कब तक नींद न आँखें छूगी, कब तक होगी जाग 
कब तक जोगी दिन गावेंगे,  वही पुराना राग 

गाँव भूली, देस बिसारा, ऐसी लागी लाग 
बस वे चुनरी बाँध के बैठी, जिसमें  लागा दाग  

दिन बिरहा के निगल न पावूं, बिना नमक का साग

No comments: