4.5.13

सयानों की महफ़िल


अबे  ओ  बे अहमक
चल  उठा  अपनी
बिन  मुखड़े  के  अंतरों  और
अधूरी  कविताओं  से  पटी,  फटी
डायरी
उठा  अपने  फज़ूल  के  फ़ितूर
फ़ोकट  के  फलसफे
अपनी  ही छाया  दबोचते
चकराते,  जवाबों की  दुम  दोबते,
सवाल
उठा  अपने  हिस्से  के
बिना  किसी  नैतिक  के
किस्से
उठा,  और  निकल  ले

सयानों  की  महफ़िल  बस  अब
सजने  को  है


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