कभी कभी किसी लफ्ज़ से प्यार सा हो जाता है, चाहे उसका मतलब न पता हो. वैसे भी प्यार किसी मतलब से थोड़े ही किया जाता है. तो गुडगाँव में एक चीनी-जापानी रेस्तराँ 'हाओ शि नियाँ नियाँ' है. जुबां पर ऐसा बैठा है कमबख्त जैसे माशूक का नाम. इस लिए:
तेरे मेरे दरमयां, कुछ नया है पक रहा
हाओ शि नियाँ नियाँ, हाओ शि नियाँ नियाँ
दिल के टूटे फर्श पर, जब से तूने पग धरा
आ रहा है जलज़ला, हाओ शि नियाँ नियाँ
तेरे मेरे दरमयां, कुछ नया है पक रहा
हाओ शि नियाँ नियाँ, हाओ शि नियाँ नियाँ
दिल के टूटे फर्श पर, जब से तूने पग धरा
आ रहा है जलज़ला, हाओ शि नियाँ नियाँ
रास्ते अलग अलग, मंजिलें जुदा जुदा
फ़िर है क्या ये माज़रा, हाओ शि नियाँ नियाँ
दिल की बात मत सुनो, सीधे रास्ते चलो
सोचते हो क्या मियाँ, हाओ शि नियाँ नियाँ
तुझ को मैंने क्या दिया, तुझ से मैंने क्या लिया
क्यूँ हैं फ़िर ये तल्खियाँ, हाओ शि नियाँ नियाँ
फ़िर है क्या ये माज़रा, हाओ शि नियाँ नियाँ
दिल की बात मत सुनो, सीधे रास्ते चलो
सोचते हो क्या मियाँ, हाओ शि नियाँ नियाँ
तुझ को मैंने क्या दिया, तुझ से मैंने क्या लिया
क्यूँ हैं फ़िर ये तल्खियाँ, हाओ शि नियाँ नियाँ
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