पहर के शहर में
रूप की धूप में
छाँव कैसे छने
चेहरा उसका चनारों
पे चम चांदनी
बोल जैसे पहाड़ों
पे पिघली नदी
नूर सी नार की
नेह दरकार में
नींद कैसे बुनें
पहर के शहर में
रूप की धूप में
छाँव कैसे छने
उसकी आँखें हैं
आषाढ़ के अब्र सी
सोंधी साँसे हैं
संदल से भी संदली
मेघ के मास्क बिन
चाँद की मांद में
सेंध कैसे लगे
पहर के शहर में
रूप की धूप में
छाँव कैसे छने
रूप की धूप में
छाँव कैसे छने
चेहरा उसका चनारों
पे चम चांदनी
बोल जैसे पहाड़ों
पे पिघली नदी
नूर सी नार की
नेह दरकार में
नींद कैसे बुनें
पहर के शहर में
रूप की धूप में
छाँव कैसे छने
आषाढ़ के अब्र सी
सोंधी साँसे हैं
संदल से भी संदली
मेघ के मास्क बिन
चाँद की मांद में
सेंध कैसे लगे
पहर के शहर में
रूप की धूप में
छाँव कैसे छने
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