साये मायूसी के गहरे हैं यहाँ
हम बड़ी देर से ठहरे हैं यहाँ
दिल को आज़ादख़याली की तलब
और हर सोच पे पहरे हैं यहाँ
किसको फ़रियाद सुनाये जाकर
मुल्क़ के शाह भी बहरे हैं यहाँ
उफ़न रहा है रेत का दरिया
ख़ाक पे लोटती लहरें हैं यहां
मन्नू बेमुल्क औ बेदीन भला
कैसे जीये जो वो ठहरे है यहां
हम बड़ी देर से ठहरे हैं यहाँ
दिल को आज़ादख़याली की तलब
और हर सोच पे पहरे हैं यहाँ
किसको फ़रियाद सुनाये जाकर
मुल्क़ के शाह भी बहरे हैं यहाँ
उफ़न रहा है रेत का दरिया
ख़ाक पे लोटती लहरें हैं यहां
मन्नू बेमुल्क औ बेदीन भला
कैसे जीये जो वो ठहरे है यहां
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