20.10.15

नवदुर्गा

Day 1

हवनकुंड में हुयी सती
फिर जन्मी वो पार्वती
हुयी पुनः शिव की वामा
गणेश-कार्तिकेय की माँ
एक हाथ में लिए त्रिशूल
और दूसरे पद्म-फूल
वृषारूढा नंदी-सवार
साक्षात शक्ति-अवतार
चन्द्रमा से भाल पर
अर्ध चंद्रिका डाल कर
नवदुर्गा का पहला रूप
माता प्रकृति-स्वरुप

मूलाधार चक्र की स्वामिनी
शैलपुत्री भवानी

This one for Mother Nature.


Day 2

पार्वती ने शिव को पाया
सती-जन्म स्मरण हो आया
शिव को पाने शिव में खोने
पार्वती चली शक्ति होने
शिव तो ठहरे घोर अघोरी
कामातीत वो आदियोगी
श्वेताम्बर धर हुई तपस्विनी
नाम धरा फिर ब्रह्मचारिणी
एक हाथ रुद्राक्ष की माला
दूजे लिया कमंडल प्याला
पर्ण भोज तज क्षीणकाय हो
उमा अपर्णा कहलाई वो
तन मन की सारी सुध त्यागी
शिव-सम वो भी हुयी विरागी

स्वाधिष्ठान चक्र की स्वामिनी
माँ ब्रह्मचारिणी

This one for shunning the material world to seek the infinite spirit.


Day 3

शिव ने तज कर घोर तपस्या
पार्वती को हिया लगाया
शिव ले कर फिर चले बाराती
भूत पिशाच औघड़ सन्यासी
शिव-रूपम विकराल देख कर
गौरा की माँ खाई चक्कर
चंद्रघंटा रूप बना कर
भाल पर चन्द्रमा बिठा कर
पार्वती ने शिव को मनाया
शिव ने सौम्य रूप सजाया
अष्टभुजा है रूप तीसरा
अभया-मुद्रा सिन्हारूढा
रौद्ररूप में जब ये आये
चंडी चामुण्डा कहलाए

नाभि-स्थित मणिपुर चक्र की स्वामिनी
माँ चंद्रघंटा/चंद्रखंडा

This one for her powers of persuasion that are more than a match for Shiva.


Day 4

स्व-ऊष्मा ब्रह्माण्ड बनाया
इसी तेज से सूर्य जलाया
वाम नेत्र जन्मी महाकाली
वीभत्सा श्यामा विकराली
दायें नेत्र से धवल शारदा
शांतस्वरूपा श्वेताम्बरा
तीसरे नेत्र जन्मी महालक्ष्मी
ऐश्वर्या वह ज्वालारूपी
फिर इनसे जन्मे त्रिदेव
ब्रह्मा विष्णु महादेव
आदि शक्ति वह जीवन ऊर्जा
बीजस्वरुप अनंत सृष्टि का
प्रथमगर्भा आद्या माता का
चतुर्रूप कूष्मांडा कहाता

अनाहत चक्र की स्वामिनी
माँ कूष्मांडा

This one for the beginning of the beginning, the mother prime.

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