कहने को जंगल कहते हैं
हर पेड़ मगर तनहा तनहा
यूँ चले सदा काफ़िलों में
पर कटा सफ़र तनहा तनहा
कभी वीराने जशनों से लगें
कभी जलसाघर तनहा तनहा
दो बात हमें भी करनी हैं
कभी मिलो अगर तनहा तनहा
अपनी संगत रब की संगत
मैं और सागर तनहा तनहा
जो यारों का था यार बड़ा
उसकी भी कबर तनहा तनहा
हम भीगे थे तनहा तनहा
बरसा बादर तनहा तनहा
2 comments:
wah sir mazaa aa gaya. aaj main bhi likhunga :)
Kaun kehata hai Ghazalen khatam ho rahi hain.
Deepak
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