20.3.12

दर्द, कविता

दर्द की न परिभाषा रे
दर्द की अपनी भाषा रे

दर्द से ही हमदर्द बने
दवा बढे तो दर्द बने

कभी दर्द दवा सा लगा करे
कभी दर्द की भी लत लगा करे

दर्द बंटे तो दर्द कटे
दर्द को दो तो दर्द मिले

दर्द से दर्द का रिश्ता भी
दर्द बनाये फ़रिश्ता भी

दर्द को खुल के पिया करो
बाद में कविता किया करो

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