16.11.11

समय के टैंक

रिश्ते
वाकये
साम्राज्य
इंक़लाब 
फ़लसफ़े
बलिदान
नाइंसाफियां
कुचले जाते हैं सब
समय के टैंक के पहियों तले
नहीं रुकता वो, बढता जाता है
बाद में धूल छानो तो
मिलती हैं
टूटी-फूटी
कहानियां





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सुना वो आज़ भी लिख लेता है
उस में कुछ भूख बची होगी अभी

भूख ज़िंदा तो लफ्ज़ भी ज़िंदा





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आजकल सोच भटकती है कम
पकड़ के लीक सीधा सा चले मन

लगे है बूढ़ा हो चला शायद

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