1
उफ़क़ पे लाल ऊन के तागे
जैसे दिन को उधेड़ता है कोई
लगता है सर्दियां ग़ुज़र चुक्की
2
तुझे दुत्कारती है दुनिया तो शुक्र मना
मुर्दा कुत्ते भी छेड़ता है कोई
उछल के टांग काट ले इसकी
3
रात सपनों के लम्बे चेहरों पे
कस के दरवाज़ा भेड़ता है कोई
इनको अब सेंध सिखानी होगी
उफ़क़ पे लाल ऊन के तागे
जैसे दिन को उधेड़ता है कोई
लगता है सर्दियां ग़ुज़र चुक्की
2
तुझे दुत्कारती है दुनिया तो शुक्र मना
मुर्दा कुत्ते भी छेड़ता है कोई
उछल के टांग काट ले इसकी
3
रात सपनों के लम्बे चेहरों पे
कस के दरवाज़ा भेड़ता है कोई
इनको अब सेंध सिखानी होगी
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