27.2.13

चोटियाँ

1

उफ़क़ पे लाल ऊन के तागे
जैसे दिन को उधेड़ता है कोई

लगता है सर्दियां ग़ुज़र चुक्की

2

तुझे दुत्कारती है दुनिया तो शुक्र मना
मुर्दा कुत्ते भी छेड़ता है कोई

उछल के टांग काट ले इसकी 

3

रात सपनों के लम्बे चेहरों पे
कस के दरवाज़ा भेड़ता है कोई

इनको अब सेंध सिखानी होगी

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