6.3.13

notes

उँगलियों पे सुनहरी गर्द छूट जाती है
तितलियों के महीन पंखों को छू लो अगर

दर्द की तासीर भी कुछ ऐसी है



*



किसी ग्लेसिअर का ठंडा पानी
अन्जरी में हो भर लिया जैसे

तेरी आँखों में झांका तो मुझे ऐसा लगा


*


सुर्ख आँखें हैं किनारों के दांत तीखे से
हँसते हैं गंदे चुटकुलों पे बस
शहर में कितने लकड़बघ्घे हैं
भूल से तुझ को कहीं गोश्त न समझ बैठें

मेरी बच्ची तुझे पिस्तौल दिलानी होगी


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