उँगलियों पे सुनहरी गर्द छूट जाती है
तितलियों के महीन पंखों को छू लो अगर
दर्द की तासीर भी कुछ ऐसी है
*
किसी ग्लेसिअर का ठंडा पानी
अन्जरी में हो भर लिया जैसे
तेरी आँखों में झांका तो मुझे ऐसा लगा
*
सुर्ख आँखें हैं किनारों के दांत तीखे से
हँसते हैं गंदे चुटकुलों पे बस
शहर में कितने लकड़बघ्घे हैं
भूल से तुझ को कहीं गोश्त न समझ बैठें
मेरी बच्ची तुझे पिस्तौल दिलानी होगी
तितलियों के महीन पंखों को छू लो अगर
दर्द की तासीर भी कुछ ऐसी है
*
किसी ग्लेसिअर का ठंडा पानी
अन्जरी में हो भर लिया जैसे
तेरी आँखों में झांका तो मुझे ऐसा लगा
*
सुर्ख आँखें हैं किनारों के दांत तीखे से
हँसते हैं गंदे चुटकुलों पे बस
शहर में कितने लकड़बघ्घे हैं
भूल से तुझ को कहीं गोश्त न समझ बैठें
मेरी बच्ची तुझे पिस्तौल दिलानी होगी
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