31.5.13

पाकेट बुक

बच्चा ही था
जब वो मेरे हाथ लगा था
मन की कच मिट्टी में
आ गिरा था
बापू की बी ए की
किताबों में दबा
बित्ते भर का
पाकेट बुक

फिर उस मिट्टी पर गिरे
केमिस्ट्री की कितनी किताबों
के बुरादे
और लड़कपन में
डेबोनायर के चमकीले
सेंटरस्प्रेड्स की पालिश

मगर बीज जम गया
तो बस जम गया
एक बौना सा
बौन्साई भी उगा
आज भी जिस पर
गाहे-बगाहे उग आते हैं
कम रस वाले कुछ शेर

मिट्टी खास उपजाऊ न थी
मगर खाली तो न गया
दीवान-ए-ग़ालिब
का वो सस्ता
पाकेट बुक

1 comment:

vivek said...

bahut khoobsurat sir! wah!!!