आज़ जब उस
चार-फुटे नरकंकाल
ने हाथ फैलाया
खच्च
तूने फ़िर चढ़ा लिया
अपनी गाडी का शीशा
शीशा क्या, दो विपरीत
परिस्थितियों के बीच
एक पारदर्शी परत
जिस से नज़र तो
जाती है बाहर
(सब टिंटेड दिखता है )
मगर अन्दर नहीं आने पाती
बाहर की असहायता
कल वो बड़ा होगा
अगर
तो उग आयेंगे उस के हाथ पे
नाखून
नोच लेंगे तेरी
Rayban चढ़ी
पत्थर की आँख
उंगलियाँ मिल के
बना लेंगी Che की
मुठ्ठी
जो किरच किरच कर देगी
कांच, और
फाड़ डालेंगी
तेरे ब्रांडेड कैसुअल्स
तेरे बेज़ सीट कवर
तूने तो पढ़ा है इतिहास
तू तो जानता है
क्रांति की निर्ममता
जो गिराती है
दूध से नहाने वाली रानियों
की दूधिल गर्दन पर
जंग वाले गिलोटीन
खच्च
गिलोटीन गिराने की आवाज़
बिलकुल वैसी है न
जैसी
शीशा चढ़ाने की आवाज़
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