महानगर की लाल बत्ती पे
कितने टूटे हुए इंसां बिखरे
किसी बिगड़े हुए बच्चे के खिलौनों की तरह
***
अपना सूखा हुआ मुरझाया सा चेहरा ले के
ताज़े फूलों का बुके बेचने निकली थी वो
फूलों पे पानी छिड़कना नहीं भूली लेकिन
कितने टूटे हुए इंसां बिखरे
किसी बिगड़े हुए बच्चे के खिलौनों की तरह
***
अपना सूखा हुआ मुरझाया सा चेहरा ले के
ताज़े फूलों का बुके बेचने निकली थी वो
फूलों पे पानी छिड़कना नहीं भूली लेकिन
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