1.8.13

चोर

पीछे खिड़की से दबे पाँव निकलता था वो
मैंने आवाज़ दी तो उड़ गया, नौ दो ग्यारह
पोटली गिर गयी, बिखर गया सारा सामां

कुछ तो घुंघराले से काले से बालों की लटें
भीमसेनी सुरमे की डिबिया में पड़े दूध के दांत
माँ के हाथों का सिला मेरा फेवरेट स्वेटर
कुछ बिना नाम के चेहरे, बिना चेहरों के नाम
थोड़ी चंपक थोड़ी नंदन थोड़ी चंदामामा
एक धूमिल पड़ी तस्वीरों से अटा एल्बम
बया के घोंसले सूखे, औ गौरैया के पंख
खट्टी मीठी दो गटागट, दो लैला की उंगली
कुछ अदद मिक्स टेप, एक कसी जींस पैंट
कुछेक ख़त जो लिखे तो, मगर भेजे ही नहीं
मेरा बचपन, लड़कपन, कुछ जवानी के भी दिन
जिन्हें बाज़ार में बेचो तो मिले न धेला

पोटली बांधो, संभालो मेरा बिखरा सामां
इसको फिर से किसी महफूज़ जगह पे रखो
पीछे खिड़की से दबे पाँव निकलता है वक़्त

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