13.8.13

बुत हुआ बैठा है आदम फ़िर से
चुनना है दैर या हरम फ़िर से

कोई दिन को सियाह कर दे ज़रा
रात सोये नहीं हैं हम फ़िर से

वो तो पहलू में ही सोये हैं दिल
खाता है कौन सा ये ग़म फ़िर से

खिड़कियाँ भेड़ लो, खुदाबंदों
हवा सरहद की है गरम फ़िर से

फिर से काफ़िर ने देखो तौबा की
देखो खाई खुदा कसम फ़िर से

फिर से झंडे कफ़न बने हैं कुछ
कुछ उठे सर हुए कलम फ़िर से

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