8.10.13

नीमकश

चल रकीबों के साथ पीते हैं
यूँ अपना चाक ज़िगर सीते हैं

न संभलते हैं न उजड़ते हैं
ज़िंदगी नीमकश सी जीते हैं

बीती बातों की तरतीबी में
अपने दिन रात अब तो बीते हैं


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