29.9.13

झूला

लाल कुप्पे सा फूला है
सूरज आगबबूला है

नखलिस्तान नहीं प्यासे, वो
धूल का एक बगूला है

तुम फ़िर क्यूँ मिल जाते हो
मुश्किल से दिल भूला है

पेट में उतनी आग लगे
जितना ठंडा चूल्हा है

ऊँच-नीच कभी नीच-ऊँच
क़िस्मत ऐसा झूला है

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