1.3.14

अज़नबी

https://soundcloud.com/manish-august-bhatt/ajnabi

Written by me
Composed and sung by: Roy Menezes

अज़नबी वो पिघल सा रहा है
दिल के सांचे में ढल सा रहा है
भीगे कोहरे की झालर हटा कर
कोई चेहरा निकल सा रहा है

अज़नबी वो...

एक सपना उगा है नज़र में
है उनींदी ख़लिश भी जिगर में
बादलों से किरण झांकती है
कोई दरिया पिघल सा रहा है

अज़नबी वो...

जब सियाही की चादर बिछे तो
नींद रह जाती है किस शहर में
जागी आँखों से जीना उतर कर
दिल में घर कोई कर सा रहा है

अज़नबी वो...

नाम जिसका लिखा हसरतों ने
कल तलक था छिपा चिलमनों में
कल तुम्हें देख कर ये लगा क्यूँ
अब वो चिलमन ढलक सा रहा है

अज़नबी वो...

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