3.3.14

कविता

जब खुण्डी पड़ी हो
अहसास की धार
भावनाओं पर
जमा हो पाला
मैं दुछत्ती में पड़े बक्से से
निकालता हूँ कोई याद
अतीत का कोई स्वाद
आस्तीन से साफ़ कर
दांतों में दबा जीभ
उसके जंग लगे ढक्कन को
खोलता हूँ

फ़िर उसमें डुबो कर तर्जनी
लिख डालता हूँ एक कविता   

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