20.5.14

हरी ज़मीन का ज्यों कब्र बना रखा है
उसे शहर ने इमारतों में दबा रखा है

हमारे जीने मरने का कोई मकसद होगा
इसी उम्मीद का तो नाम खुदा रखा है

जो गया था वो अभी लौट के आता होगा
हमने सालों से हथेली पे दिया रखा है

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