शेर गुम थे, नज़्म गायब और ग़ज़ल भी लापता
आज फिर की वक़्त से जंग, कौन जीता क्या पता
कैक्टसों के खेत में सूरजमुखी बस एक दो
इनको खुल के खिलने दो तुम, दीन पूछो न पता
जबके कश्ती के मुक़द्दर में बदा है डूबना
फिर ये ज़िद्दी क्यों किनारे से बनाये राबता
आज फिर की वक़्त से जंग, कौन जीता क्या पता
कैक्टसों के खेत में सूरजमुखी बस एक दो
इनको खुल के खिलने दो तुम, दीन पूछो न पता
जबके कश्ती के मुक़द्दर में बदा है डूबना
फिर ये ज़िद्दी क्यों किनारे से बनाये राबता
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