9.11.14

टुकड़े

तारे गुब्बारे बन गए सारे
हमने आहों की हवा दी थी इन्हें

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ये ज़हर लाजवाब होता है 
इश्क़ ऐसी शराब होता है 

हाथ लगती फज़ूल यादें बस
यूँ ही खाना खराब होता है


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रेत को पकड़ा, पानी बांधा, बिसरी बातें याद करी
कुछ घड़ियों को घड़ी को रोका, कल यारों से बात करी

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रात तारों भरे फलक पे हम
डॉट्स को जोड़ते रहे ता-सहर

तेरा चेहरा नहीं बना फ़िर भी

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नीमसर्द दिन में
नीमदर्द दिल में

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