28.5.15

घनचक्कड़ चक्कड़

भेजा लाल बुझक्कड़ है जी
दिल फक्कड़ का फक्कड़ है जी

हमसे दिल ना बाँध रै छोरी
अपने पैर में चक्कड़ है जी

कभी बगल में कभी शगल में
पीसा बड़ा घुमक्कड़ है जी

दिल क़दमों में जानेचमन के
और गालों पे थप्पड़ है जी

दिल में आग लिए सोते हैं
और भूसे का बिस्तड़ है जी

दुनिया को क्या बूझे मन्नू
दुनिया तो घनचक्कड़ है जी

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