हमको इज़हार-ए-प्यार देते हो
या ज़िन्दगी उधार देते हो
कभी नज़रों से चढ़ा देते हो
कभी पूरी उतार देते हो
जब भी यादों में आन मिलते हो
जैसे सरहद पे तार देते हो
मुस्करा के नज़र झुकाते हो
मानो दुगुनी पगार देते हो
मन्नू अपना कहे तो कैसे कहे
कब इतना अख़्तियार देते हो
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