ज़िन्दगी की धूप छाँही
आँखों के जालों में
अंधे बंद कमरों के
टिमटिमाते आलों में
रखी हैं संभाल के जो
धुंधलाती यादों में
सूखी पत्तियां बचपन की
पीली सी किताबों में
धूल में जो मिल जाएंगी
ढूँढोगे न मिल पाएंगी
मैं सिरा
माज़ी का
धुँआ बन बिखर जाऊँगा
बीज दो मुझे बातों में
सीज लो अभी यादों में
रेत के शहर कल जाऊंगा
झुर्री वाले चेहरों की
टेड़ी मेढ़ी राहों में
जड़ बरगद की
नसों वाले हाथों में
कितने किस्से गुम हैं यहाँ
मेरे हिस्से गुम हैं यहाँ
रेत के बीरान शहर में
पूछें किस से गुम हैं कहाँ
मुझे दोहराओगे न
भूल तो न जाओगे न
मैं सिरा
माज़ी का
धुँआ बन बिखर जाऊँगा
बीज दो मुझे बातों में
सीज लो अभी यादों में
रेत के शहर कल जाऊंगा
दूर कितना जाओ हमसे दूर कैसे हो पाओगे
खुद के ही चेहरे में मेरी आँखें पाओगे
ढूँढ़ते फिरोगे अपनी जडें इन्हीं बातों में
मैं सिरा
माज़ी का
धुँआ बन बिखर जाऊँगा
बीज दो मुझे बातों में
सीज लो अभी यादों में
रेत के शहर कल जाऊंगा
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