27.11.15

मिज़ाज़

डायरी में कई इंक़लाब रखता है
वो शायराना मिज़ाज़ रखता है

हुक़्मरानों में खौफ़ है उसका
अज़ब फक़ीर है, क़दमों में ताज रखता है

खामोशियों के गीत गाता है
और हड्डियों के साज़ रखता है

पुराने तौर का बाशिंदा है
दुश्मनों के भी राज़ रखता है

आस्तीनों में सांप रखता है
वो पिंजरों में बाज रखता है

शीरीं मन्नू को हज़म न होवे
हाँ ज़हर का इलाज़ रखता है

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