18.11.15

यारों

याद का गहरा समंदर है बचा लो यारों
मैं डूबता हूँ कोई तिनका तो फेंको यारों

मैं खड़ा हूँ वहीँ पे उस दरख़्त-ए-टेसू सा
तुम बढ़े जाते हो कभी पीछे तो देखो यारों

बंद दरवाज़ा खटखटा के न लौटो ऐसे
मैं इंतज़ार में हूँ खिड़की से झाँको यारों

1 comment:

Living Paradox said...

सर्वोत्तम लेखक...हाँ चचा का चेला है...