13.5.16

शायर सपना

रात नींद की हड़ताली थी
फिर भी सपने काम पे आये
उकड़ू बैठे, गप्पे हाँकी
बीड़ी फूंकी, खैनी रगड़ी
किस्से खोले क़िस्मत कोसी

एक सपना कविता करता था
अपने को शायर कहता था
सारी बातें तुकबंदी में
बोल बोल बोर करता था

मगर अपन को टाइम बड़ा था
हम बोले इरशाद मियाँ
कुछ अधकच्चा अच्छा कह दो
दे देंगे फिर दाद मियाँ

उसने अपना गला खँखारा
आवारा सी लट को संवारा
कुरते की सलवट फटकारी
और डायरी खोल के बोला

घास का एक बिछौना सा था
चाँद का एक खिलौना सा था
हमने सोचा ऐसा कर लें
नभ को उसका माथा कर लें
उस माथे पे बिंदी होगी
उस बिंदी को चाँद कहेंगे

मैं बोला ये बात है बासी
प्यार मोहब्बत चाँद की बिंदी
अब तो टैटू फैशन में हैं
अब ये बिंदी कौन लगाए
खुद के दिल का हाल बताओ
कोई नयी मिसाल बताओ

थोड़ा सा नाराज़ हुआ वो
लेकिन हमसे कुछ ना बोला
अगला सफ़ा पलट कर बोला

जानते थे वो पत्थर दिल है
पत्थर दिल से काम चलाया
चाँद को उसके दिल बट्टे पे
यानी दिल के सिलबट्टे पे
घिस घिस के चन्दन कर डाला
फिर अपने माथे पे लगाया

मैं बोला हाँ इसमें दम है
लेकिन इसमें भी इक ख़म है
चाँद पे अख्तियार है उसका
नाम मियाँ गुलज़ार है जिसका
चाँद के चर्चे छोड़ दो बेटा
कविता का रुख मोड़ तो बेटा

सपना बोला सुन बे अंकल
प्यार मोहब्बत चाँद के चर्चे,
दिल की बातें, सूनी रातें
दर्द वर्द के किस्से विस्से
अपनी तो जागीर यही है
चाँद भला है किस की बपौती
किसको देनी होगी फिरौती
उमर हो चली है अब तेरी
इशक विशक को भूल चला है
रात जलाना अब बस का ना
करवट ले के सो जा अंकल

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