6.8.11

मन, आसमान, सूरज , रात


रात अंगारों सा सुलगता है राख के भीतर 
सारे दिन फिर इसे सूरज ने जलाया कल भी 
जैसे कागज़ था कोई रखा लेंस के नीचे
पड़ गया काला, हाशियों पे बस
बची चिंगारियों सी शाम सुलगती है अब 

मेरा मन आसमान जैसा है


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दो उजले सफेद पन्नों के बीच में रखी
एक कार्बन पेपर जैसी काली रात




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लाल चटख सा एक सूरज हुआ बरामद आज सुबह
उस गुदड़ी से रात जिसे ओड़ के सोया आसमान था

1 comment:

Anonymous said...

wow!Specially carbon wali lines.

Deepak