रात अंगारों सा सुलगता है राख के भीतर
सारे दिन फिर इसे सूरज ने जलाया कल भी
जैसे कागज़ था कोई रखा लेंस के नीचे
पड़ गया काला, हाशियों पे बस
बची चिंगारियों सी शाम सुलगती है अब
मेरा मन आसमान जैसा है
*************************************************
एक कार्बन पेपर जैसी काली रात
*****************************************
लाल चटख सा एक सूरज हुआ बरामद आज सुबह
उस गुदड़ी से रात जिसे ओड़ के सोया आसमान था
उस गुदड़ी से रात जिसे ओड़ के सोया आसमान था
1 comment:
wow!Specially carbon wali lines.
Deepak
Post a Comment