मैं चिंतित हूं
उनके बेलगाम उन्माद से
बस वे हैं इकलौते सत्य के
उनके बेलगाम उन्माद से
बस वे हैं इकलौते सत्य के
एकमात्र ध्वजारोही
उनके इस अडिग विश्वास से
और सत्य भी कैसा, मानो
उनके इस अडिग विश्वास से
और सत्य भी कैसा, मानो
स्वयंसिद्ध, स्वयमभू तंत्र
तर्क वितर्क की परिधि से
अछूता, स्वतन्त्र
हाँ, मैं चिंतित हूं
उनके आक्रामक विचारों से
अबकी बार हमारी बारी
उनके आक्रामक विचारों से
अबकी बार हमारी बारी
के अविरल हुंकारों से, नारों से
हम कौन, अरे हम भाई, हम
म्लेच्छ नहीं, परदेसी नहीं
औरत नहीं, दास नहीं
तुम नहीं, तुम भी नहीं
मात्र हम, हम
हाँ, मैं चिंतित हूं
और आपको भी होना चाहिए
यदि आप भी किसी 'हम' में
खो नहीं पाते हैं
नारों की लोरी की
सम्मोहक हम-हम में भी
सो नहीं पाते हैं
3 comments:
great poem mannu.love it
Thanks Doc.
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