24.11.14

कुछ और टुकड़े

लोग मर के ज़न्नत जाते हैं
हम ज़न्नत दुनिया करते हैं
हमें खुदा-वुदा का शौक़ नहीं
हम उन का सज़दा करते हैं

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कुतरी कुतरी याद जवानी आती है
यादों को भी सिल्वरफिश लग जाती है

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फ़िर ज़ेहन में छा रहा कोहरा
मुस्कुराओ धूप निकले ज़रा

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माल सूरज का खुल के बांटे फिर
रात भर वाहवाही लूटा फिरे

ये चाँद भी बड़ा कमीना है

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तेरे ख़त का कॉमा देखो
चाँद बना इतरावे है
और सियाही फ़ैल गयी है
रात रात बन जावे है

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दिल के हर नुक़्ते पर भारी
तेरे ओंठ पर तिल का नुक़्ता

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