16.12.14

अहमक

तू नफरत उगले जाता है
मैं ज़हर निगलता जाता हूँ
तू खून बहाए जाता है
मैं कविता गाये जाता हूँ

तू लाशों पे नंगा नाचे
मैं जख़्म भराए जाता हूँ
तू गोली की खेती करता
मैं फूल उगाये जाता हूँ

सब कहते हैं तू जीत रहा
सब कहते हैं मैं अहमक हूँ
तू झूठ के किले बनाये जा
मैं सच दोहराये जाता हूँ

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