हिंदुओं में न मुसलमानों में
मेरी गिनती करो इंसानों में
बस एक आम आदमी की शै
जिसका कुछ खौफ़ हुक्मरानों में
कितने पेटों की आग ले करके
भट्टी जलती है कारखानों में
जिन्हें तारे समझती है दुनिया
ख्वाब हैं दफ़्न आसमानों में
न उसकी बात सयाने समझें
सो मन्नू बैठे है दीवानों में
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