19.1.15

टुकड़ा

किसने सूरज गला के बनाई ये धूप
और मेरे शहर पे उढ़ेला इसे

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इतना भी नहीं आसां, कोई अच्छी नज़्म कहना
धूँए की रस्सियों को कभी बाँध के देखा है?

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जो खुद की दुनिया में रमता  
सीखे कैसे दुनियादारी? 

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