25.3.15

अश्क़, मौसम

या तो पल पल में यहाँ आलम बदलते हैं
या तो पल पल में यहाँ तुम हम बदलते हैं

साथ मरने के अहद का था ज़माना और
आजकल कपड़ों के संग हमदम बदलते हैं

कोयले से गम को पहलू में दबा कर सेह
हीरा बन जाते हैं सुन जब गम बदलते हैं

अश्क़ जो आते हैं तो गिरने दे मूसलधार
बारिशें होती हैं तो मौसम बदलते हैं

सर गिलोटिन पे तो फिर उम्मीद क्यूँ मन्नू
शाह जो मंशा बना लें कम बदलते है

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