31.3.15

गुज़ारी कहाँ

चैन की चिड़िया को पिंजर में, गुज़ारी कहाँ
ख्व़ाब दुश्मन हों तो फिर, नींद से यारी कहाँ

इक पहर सो लूँ जो फिक्रों, तुम को है तक़लीफ़ क्यों
फिर सुबह के जागते ही, जंग हो ज़ारी यहाँ

ये फ़ख़त तेरा भरम है, काम निपटेंगे कभी
मौत जब भी आये, चलने की हो तैयारी कहाँ

बिन तेरे हर रोज़ रोज़ा, रात मेरी निर्जला
जब तलक तू आ न जाए, अपनी इफ़तारी कहाँ

तेरी हर इक बात का यूँ मन्नू रखता है जवाब
फिर भी चुप है सोच कर कुछ, वरना लाचारी कहाँ

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