कितनी हरियाली है यहाँ
तुमने कहा
मैंने देखा
पैरों के नीचे की
पीली हरी दूब को
जो कुचल कर भी
मानती नहीं हार
जिद्दी उग आती है बार बार
हलके हरे तरुण वृक्षों को
जिन्होंने देखे नहीं अंधड़
झूम उठते हैं जो लू में भी
फर्स्ट डे फर्स्ट शो देख कर
देखा बरगद का घना हरापन
जिसकी सीली अँधेरी काँखों में
उदारता और निर्ममता दोनों रहती हैं
अगल बगल
सो जाते हैं पक्षी दिन में भी
छुप कर यहां
देखी बगीचों की संभ्रांत हरियाली
जिसे माली हर दिन
कतरता है
गढ़ता है
सिखाता है कीट्स और शैली की कविताएं
और जंगलों की अल्हड़ हरियाली भी
जिस से उठती है पसीने की गमक
और मेहनत से कसी टहनियां
लचकती हैं बरसात में
ताड़ी पी के
किसी लोकगीत की
सम्मोहक थपक पे
इतने सब को सिर्फ हरियाली कहना
नाइंसाफी होगी न
25.6.15
हरियाली
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