29.6.15

खुद का नाम

आज से कल कल बहूँ, मैं
नदी सी अविरल बहूँ
मुझे बाँध में बांधो नहीं
मुझे अंजुरी में मत भरो

हंसी बन के खिलखिलाऊँ
खुशबुओं सी फ़ैल जाऊँ
हवा को बांधों नहीं, सब
खिड़कियों को खोल दो

गगन को नापे फिरूँ, निज
क्षितिज का पीछा करूँ
उत्कर्ष को बांधों नहीं
मुझे पिंजरे में मत भरो

अपना ही इक नाम हो
कुछ स्वयँ की पहचान हो
किसी नाम से बांधो नहीं
उन्मुक्त मुझको छोड़ दो

No comments: