29.6.15

टुकड़े टुकड़े ग़ज़ल

हमारी बात से हुज़्ज़त उन्हें है
हैं जिनके तरकशों के कारखाने

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ज़मीं को ही नहीं वो दिल को भी कर देती है नम
कि मेरे मुल्क की बारिश बड़ी ही अलहदा है

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ज़मीं ताउम्र न तरसे शायद
इस दफा मेह यूँ बरसे शायद

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