2.8.15

कोई

ऐसे मौसम बदल रहा है कोई
अब हवाओं सा चल रहा है कोई

उसे ज़माना न बदल पाया
अब ज़माना बदल रहा है कोई

आ के फिर से उसे बहकाने को
आज फिर से संभल रहा है कोई

सबने पत्थर उठा लिए, काफ़िर
या के पैगम्बर निकल रहा है कोई

महफ़िलों में नज़रअंदाज़ न कर
तन्हाई का शग़ल रहा है कोई

ये तिरी गर्मजोशी का है असर
कतरा कतरा पिघल रहा है कोई

सच बता किस पे इशारा मन्नू
सुन के अशआर जल रहा है कोई

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