काश हाथों में आईने होते
वो न यूँ नुक्ताचीं बने होते
न हम तलाश-ए-नूर में फिरते
न दिल पे साये यूँ घने होते
वो न होते लहू के यूँ प्यासे
जो एक माँ के न जने होते
ग़र हमें झूठ बोलना आता
तो कबीले के सरगने होते
शेख बराहमन खुदा से डरते गर
हाथ न खून से सने होते
हम खुदावाले न हुए मन्नू
वरना हम भी खुदा बने होते
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