25.10.15

दस्तूर

न ऐतराज़ उसे और न मंज़ूर ही है
हो मौक़ा तो हो भला ये कोई दस्तूर भी है

कमबख़त तेरा तसव्वुर, रात का तीजा पहर
ख्वाब रुकते भी नहीं, नींद ये काफ़ूर भी है

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