30.12.15

सदाशिव

मेरुपर्वत सी 54 मीनारों पर
सलेटी सैंडस्टोन से उकेरे
हरे भूरे शैवाल से अधढके
216 चेहरों की
अधखुली आँखों से
शांत मुद्रा में
मंद मुस्काता
(मूंदे तीसरा नेत्र)
खमेर कम्पूचिया के 
जटाजूट से उलझे
उमसते जंगलों में
चारों दिशायें निहारता
आठ सदियों से
अपनी काशी से
अपने गया से
सहस्त्रों मील दूर
मैं जयवर्मन सप्तम का
अवलोकितेश्वर बोधिसत्व हूँ
जयवर्मन अष्टम का
महाशिव भी
और मैं स्वयं
देवराजा जयवर्मन भी हूँ
मेरे नाम बदलते रहेंगे
किन्तु इन सलेटी पत्थरों पर
झुकते रहेंगे सर
श्रद्धा से
प्रेम से
कौतुहल से
किंचित भय से
अमरत्व की महत्वाकांक्षा
और चिर-युद्ध से मंडित
मानव इतिहास के
रक्तवर्णी स्मृति पटल पर
एक अमिट नीलाभ चिन्ह सा  
मैं रहूंगा सदैव
अनादि
अनंत
सदाशिव

No comments: