11.2.16

खू-ऐ-बादाखारी

वही ज़ीनत तुम्हारी है
वही हालत हमारी है

तेरे इक नाम का कलमा
हरेक आयत पे भारी है

मेरा कातिल न हो रुसवा
ये मेरी ज़िम्मेदारी हो

न छूटे जान से पहले
ये खू-ऐ-बादाखारी है

तेरे आरिज़ की शबनम पे
मेरी जां वारी वारी है

वस्ल के एक लम्हे की
अज़ल से इंतजारी है

शहर में मन्नू का चर्चा
दीवानों में शुमारी है

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