7.3.16

शिव-शिव

सुदूर निर्जन मरूभूमि में
ओज़ीमैंडीयास का
ओजहीन खंडित पाषाणमुंड
मेरे पैरों में लोटता है

तुम्हारे राजप्रासादों
के स्वर्ण कंगूरों
से अहम को
धूलधूसरित करती
तुम्हारे अमरत्व की भ्रान्ति
से लिपटी अमरबेल
मेरा ही नागपाश है

तुम्हारे  स्व-महिमा
के कोलाहल से
बधिर हो चले कानों में
मेमेन्टो मोरी
याद रहे तू मरणगामी है
का सतत मन्त्र फूंकती
मेरी ही भेरी

तुम्हारे स्टेथोस्कोप में
लब डुप का निरंतर स्पंदन
और प्रशांत महासागर का
ज्वार भाटा
मेरे ही डमरू के
डमडमड पे डोलते हैं

जिम मौरीसन जब
रेड इंडियन शामन सा घूमता है
उसके-
दिस इज़ दी एंड
इट हैज़ टू सेट यू फ्री
के अनर्गल प्रलाप में
मैं ही तो हूँ

जब तुम्हारा सर्वशक्तिमान सूरज
जल कर रह जाएगा वामन
अपने में ही सिकुड़ कर
हौकिंग और आइंस्टीन का
ब्लैक होल हो जाएगा
उसे अंगीकार कर
फिर बनाउंगा
नए सूरज और पृथ्वियां
पुनर्नवा

मेरा वरदहस्त तेरे भीतर के
राम पर है
तो रावण पर भी
भस्मासुर भी प्रिय है मुझे
मुझे स्वीकार हैं
देवत्व और दानवत्व दोनों

अहम और कालबोध
के भ्रम से परे
कालातीत इनफिनिटी का
अंतहीन अष्टाकार
अपनी ही पूँछ निगलता
नाग वासुकी
मैं ही हूँ

इक ओंकार
सतनाम
करतापूरख
निर्मोह
निर्वैर
अकाल मूरत
अजन्मा-अविनश्वर
अनादि-अनंत
मैं ही हूँ

और तू भी तो
मैं ही हूँ

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